Sunday, June 03, 2007

क्या ब्लोग्गिंग भगोडापन है ??


पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं भी उन भगोड़ों की जमात मे शामिल हूँ जो विशुद्ध सामाजिक राजनितिक संघर्ष से किसी ना किसी बहाने से भाग आये हैं।

मुझे लगता है कि ब्लोग्गिंग या जो कुछ भी हल्ला ब्लॉग्स पर मच रह है उनकी सामाजिकता या सामाजिक दायित्व नही है। ब्लॉग कुछ एक खास लोगों के लिए हैं और हिंदी ब्लॉग मे ये भी नही कहा जा सकता कि अंग्रेजी अखबारों की तरह ये उन चंद लोगो तक पहुचते हैं जो इसी पढ़कर कुछ करेंगे। तो फिर सवाल उठता है कि ब्लोग्गिंग क्यों? ये सिर्फ एक स्वांत सुखाय कर्म है जिसके शायद ही कोई सामाजिक आयाम हो , फायदे हो। अभी मैं कोई पोस्ट पढ़ रह था , उसमे किसी ने कहा था कि जो लेखक नही हैं वो भी यहाँ आकर उलटी सीधी कलम चलाकर लेखक बन जाते हैं और गिने चुने लोगों से दाद भी पा जाते हैं । लेकिन जिसने भी इसे लिखा , मेरा सवाल उससे है कि लेखक होने का कोई सर्टिफिकेट होता है क्या जो आप जारी करेंगे ? फ़ालतू की बहस !
खैर मुझे ब्लॉग का कोई भी ऐसा फायदा जो सीधे समाज तक पन्हुचता हो , नज़र नही आता। हो सकता है कुछ लोगो को लगता है कि वो दुनिया बदल रहे हैं ब्लोग्गिंग से। और इसी जोश मे कई बार झगडे होते हैं और लोग बुरा भी मान जाते हैं। पिद्दी सी हिंदी ब्लॉग की दुनिया और उसमे भी इतने फसाद! ब्लोग्गिंग के कोई सामाजिक मायने हैं क्या ?

6 आपकी बात:

परमजीत सिहँ बाली said...

आप ने जो लिखा वह सही है। यहाँ पर ब्लोग लिखने वाले ज्यादातर मेरे जैसे वे लोग है जो अपनी बात या अपने विचार कही प्रकट नही कर पाते।शायद समाज मे हमे कोई सुनने-पढने को कोई राजी नही होता। वहाँ पर हमारी कोई हैसियत ही नही है।सो हम अपनी अभिव्यक्ति को ब्लोग पर लिख कर आत्म संतुष्टी पाते हैं। इस से एक फायदा तो यह है कि हम तनाव से मुक्ति कुछ हद तक तो पाते हैं।इस का समाजिक मायना भी शायद यही है।

36solutions said...

बिलकुल सही कहा है भाई, पिछले दिनो चीन के एक ब्लागर ने बिल्डरो के बारे मे लिखा तो रातो रात वो ब्लागेर टाप ब्लागेर बन गया, वहा सामाजिक उपादेयता सिद्ध होता दीख पडा पर यहा हम वैसा कुछ नही कर पा रहे है इसके गर्भ मे यहा की इन्टरनेट प्रयोग करने वालो की न्यून सख्या है और हम इस सन्ख्या को बढाने के लिये कुछ भी नही कर सकते सिवाय इन्तजार के, बाली जी जो कह रहे है वो भी पूर्ण सत्य है जिसे किसी ने भी नही पढा उसे दो चार दस सौ लोग पढे तो लिखने वाले को खुशी तो होती ही है
हमारे जैसे को तो और खुशी होती है हम जानते है अपनी औकात पर क्या करे .. भाई साधुवाद समय समय पर हमे अपनी औकात याद दिलाते रहियेगा

VIMAL VERMA said...

सही सोच है आपकी राहुलजी,कोई भगोड़ा है कि नही ये तय कौन करेगा? कुल मिला अपने बेचैन मन को लोग ब्लोग मे व्यक्तिगत तौर पर रखते है,जिसे अच्छा लगे तो लगेऔर बुरा लगे तो लगे बातें तो बातें हैं....

mamta said...

ब्लॉगिंग का फायदा शायद लिखने वाले को ही होता है क्यूंकि यहाँ पर वो अपने मन की बात कह सकते है और कुछ हद तक लोगों तक भी बात पहुंचती है।

अनूप शुक्ल said...

ब्लाग अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। यह तो इसके प्रयोग करने वालों पर निर्भर करता है कि यह कितना असरकारी है। इसे प्रयोग करने वाले जिस तरह इसे अपनायेंगे वैसे ही इसके फ़ायदे/नुकसान होंगे। जहां तक सामाजिक उपयोग की बात है तो शायद आप अभी नये आये हैं। दो साल पहले सुनामी ब्लाग ने सुनामी आपदा समय के समय जितनी सामाजिक जिम्मेदारी का काम अंजाम दिया था उतना शायद तमाम परंपरागत संचार माध्यम नहीं कर पाये। इसके अलावा विकिपीडिया जैसे माध्यमों को सशक्त करने का आवाहन भी समय-समय पर ब्लागर करते हैं। यह तो आप पर निर्भर करता है कि आप इस माध्यम का कैसा उपयोग करना चाहते हैं। अंतत: तो दुनिया की सारी चीजें ही पिद्दी ही होकर रह जाते हैं। :)

Rising Rahul said...

सारी बाते सही हैं आप लोगो की , लेकिन एक छोटी सी बात है जो मुझे हज़्म नही होती. एक पोस्ट कार्ड पर भी प्रतिक्रिया न लिखने वाले ब्लॉग पर इतना ज़्यादा कैसे लिख लेते हैं ? कही ये कुंठा तो नही ? या फिर इसे फिर से समाज से भागना कहें ?