क्या ब्लोग्गिंग भगोडापन है ??पहले मैं यह स्पष्ट कर दूं कि मैं भी उन भगोड़ों की जमात मे शामिल हूँ जो विशुद्ध सामाजिक राजनितिक संघर्ष से किसी ना किसी बहाने से भाग आये हैं।
मुझे लगता है कि ब्लोग्गिंग या जो कुछ भी हल्ला ब्लॉग्स पर मच रह है उनकी सामाजिकता या सामाजिक दायित्व नही है। ब्लॉग कुछ एक खास लोगों के लिए हैं और हिंदी ब्लॉग मे ये भी नही कहा जा सकता कि अंग्रेजी अखबारों की तरह ये उन चंद लोगो तक पहुचते हैं जो इसी पढ़कर कुछ करेंगे। तो फिर सवाल उठता है कि ब्लोग्गिंग क्यों? ये सिर्फ एक स्वांत सुखाय कर्म है जिसके शायद ही कोई सामाजिक आयाम हो , फायदे हो। अभी मैं कोई पोस्ट पढ़ रह था , उसमे किसी ने कहा था कि जो लेखक नही हैं वो भी यहाँ आकर उलटी सीधी कलम चलाकर लेखक बन जाते हैं और गिने चुने लोगों से दाद भी पा जाते हैं । लेकिन जिसने भी इसे लिखा , मेरा सवाल उससे है कि लेखक होने का कोई सर्टिफिकेट होता है क्या जो आप जारी करेंगे ? फ़ालतू की बहस !
खैर मुझे ब्लॉग का कोई भी ऐसा फायदा जो सीधे समाज तक पन्हुचता हो , नज़र नही आता। हो सकता है कुछ लोगो को लगता है कि वो दुनिया बदल रहे हैं ब्लोग्गिंग से। और इसी जोश मे कई बार झगडे होते हैं और लोग बुरा भी मान जाते हैं। पिद्दी सी हिंदी ब्लॉग की दुनिया और उसमे भी इतने फसाद! ब्लोग्गिंग के कोई सामाजिक मायने हैं क्या ?