Monday, March 19, 2007

भाजपाई कुर्सी कवाब का मज़ा ही कुछ और है

आज हम आपको बताने जा रहे हैं कि इस बार का कुर्सी कवाब कैसे बनाया जाए ।

खाने वाले : सिर्फ़ एक
सामग्री : एक कप भीगी हुई सांप्रदायिकता , दो टेबल स्पून दलित चेतना , बारीक कटे हुए मुसलमान , दो तीन सालो से बोए गया हिंदुत्व का ज़हर , ताज़ा हुआ दंगा और ब्राःमन स्वाद के अनुसार
विधि
: सबसे पहले कढ़ाई मे बारीक कटे हुए मुसलमान डालिए , जब भुन कर लाल होने लगे तो उसमे थोड़ा सा हिंदुत्व बुराकिये । अब थोड़ी देर के लिए दोनो को एक ही जगह बंद कर के पकने दीजिए । थोड़ी के बाद जब अंदर से आवाज़ आनी बंद हो जाए तो उसमे थोड़ा दलित मसाला डाल दीजिए . ध्यान रखिए कि सारी चीज़े सही मात्रा मे पड़ें . अब आपको ज़रूरत है कि उसमे कुछ पानी डाले . पानी डालने के बाद उसे तब तक चलाइए जब तक कि मुसलमान , दलित और हिंदू ,तीनो आपकी मर्ज़ी के अनुसार तेल ना छोड़ दें . अब स्वाद के अनुसार ब्राःमन डालें . सूखने तक चलाएँ , सूख जाने पर चुनावी तवे पर उनकी टिकिया बनाकर धीमी आँच पे सेके . जब कुर्सी की महक आने लगे तो समझे कि कवाब तैयार है . अब आप इसका स्वाद चख सकते हैं .

Thursday, March 08, 2007

" अजी एक रोटी और ले लो ना प्लीज़ "

आज महिला सशक्तिकरण सप्ताह का दूसरा दिन है , और मेरे घर के बगल वाली औरत अपने पति से पिट रही है और उसके चीखने की आवाज़ आ रही है ...
अर्ररर...
माफ़ कीजिएगा लेकिन ये लाइनें पुरानी पड़ चुकी हैं और इतनी घिसी हैं की अब इन्हे फिर से पढ़ने का मन ही नही होता . लेकिन एक बात जो मेरी समझ मे नही आ रही है क़ि ये भी तो मानने का मन क्यूं नही होता की महिलाएँ आज दो नही दस क़दम आगे चल रही हैं . इंदिरा नुई और ऐश्वर्या रॉय , सोनिया गाँधी और वृंदा कारत , दिखाने वाले तो पूरी की पूरी लिस्ट दिखाते हैं की देखिए भाई साहब , कितनी आगे हैं हमारे देश की महिलाएँ . कोई मुक़ाबला है इनका ? नही मिलेगा . पूरी दुनिया मे कही नही मिलेगा . क्या कोई दूसरी सानिया मिर्ज़ा कहीं मिल सकती है ?
लेकिन ये सब तो सागर की कुछ बूँद मात्र हैं . इससे ज़्यादा कुछ नही . इलाहाबाद मे उसके साथ बलात्कार किया जाता है तो गुजरात मे उनकी छातियाँ काट डाली जाती है , कहीं पे ससुर उनके साथ ज़बरदस्ती शारीरिक संबंध बनता है तो कहीं पे बाप ख़ुद बेटी के साथ बलात्कार करता है .. और ये सब इसी साल की घटनाएँ हैं . (देखें यू पी और दिल्ली की हाल की कुछ घटनाएँ) .
लेकिन मेरी समझ मे अभी भी नहीं आ रहा है क़ि ये सब मैं अभी भी क्यों लिखे जा रहा हूँ ? हमे तो जब ग़ुस्सा लगेगी तो हम अपनी बीवियों पे उतारेंगे ही . अब भई खाना वग़ैरह तो हमसे बनता नही है फिर मैडम तो अभी ड्यूटी से आती ही होंगी , बनाएँगी , फिर परोसेँगी और .. " अजी एक रोटी और ले लो ना प्लीज़ " कहकर हमे खिलाएंगी ही . बेटी तो चलो हमने किसी तरह स्वीकार भी कर ली लेकिन ताने मारना तो फिर चाहे वो ग़ुस्से मे आकर ही क्यों ना मारेँ हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है , आख़िर बीवी काबू मे कैसे रहेगी . मेरी अभी भी समझ मे नही आ रहा है क़ि मैं अभी तक ये सारी बकवास क्यों कर रहा हूँ ..
शायद ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है
और मेरे अंदर तरह तरह का शैतान जाग रहा है ..

Wednesday, March 07, 2007

अब मैं मरती हूँ ...

हमारे दफ़्तरों मे क्या क्या होता रहता है क्या क्या नही होता है ... हम सब इसकी कल्पना तो कर सकते हैं , इसके परिणामो के बारे मे बहस तो कर सकते हैं लेकिन शायद आज तक किसी ने इसके लिए कुछ किया होगा , मुझे इसकी आशा नही .. बाज़ार मे हमारे दफ़्तर भी आते हैं , वो भी कुछ बेचते हैं , कुछ ख़रीदते हैं , लेकिन आख़िर इन दफ़्तरों का असली रंग क्या है .. कुछ कुछ इस स्टोरी से साफ़ हो जाता है ..
प्रियंका ... मेरे दफ़्तर मे काम करने वाली एक लड़की . मैं अपना दफ़्तर छोड़ चुका हू लेकिन जो बात मुझे बार बार कॉन्फ़्यूज कर रही है कि मैं इसका परिचय किस काल मे दूं . दफ़्तर छोड़ चुका हूँ इसलिए सोचता हू की इसका परिचय भूत काल मे देना चाहिए . प्रियंका अभी ज़िंदा है , इसलिए सोचता हूँ कि वर्तमान काल मे इस से सबका परिचय होना चाहिये और अभी भी इसकी ज़िंदगी का कोई भरोसा नही इसलिए सोचता हू कि ये ताना बाना भविष्य मे ही बूना जाना चाहिये. बहर हाल चीज़ें अपने इतिहास पर ही टिकी होती हैं इसलिए बात उनके इतिहास से ही शुरू कि जाएँ तो अच्छा रहता है और उन्हे क्रम से समझने मे भी आसानी होती है . मैं नोयडा पिछले साल आया और नौकरी भी पिछले साल ही शुरू की . पहली नौकरी थी और कुछ कर गुज़रने की जोश भी . सो मैं जी जान से काम मे लग गया . मैं दफ़्तर के संपादन विभाग मे था और अक्सर मुझे काम के सिलसिले मे बॉस के केबिन तक जाना पड़ता था . बॉस के केबिन तक पहूचने के लिए मुझे रिसेपस्न और मार्केटिंग विभाग पार करके जाना होता था जो की छोटे और कबूतर के डर्बे की तरह बीच मे बने हुए थे . रास्ते से गुज़रते वक़्त गाहे - बगाहे सब पर नज़र पड़ ही जाती थी जिनमे प्रियंका भी शामिल थी .लेकिन तब उस से मेरी कोई बात-चीत नही होती थी. कारण यही था की मैं नया था और अभी दफ़्तर के लोगों से उतना घुल-मिल नही पाया था. एक दिन बॉस का हुक़म हुआ कि मैं प्रियंका को साथ लूँ और ग्रेटर नोयडा के एक अस्पताल का मुयायना कर आइए . उस अस्पताल पैर मुझे एक इँपेक्ट फ़ीचर करना था . हम दोनो ड्राइवर के साथ कार से तक़रीबन 20-25 किलोमीटर का फ़ासला तय करके उस अस्पताल तक पहुचे . रास्ते मे हुमरे बीच कोई बात-चीत नही हुई . इसका कारण शायद यह था कि मैं काफ़ी झिझक रहा था और वैसे भी वो वहा मार्केटिंग के काम से जा रही थी तो उससे मेरा उतना मतलब भी नही था . रास्ते भर मैं और ड्राइवर आपस मे बतीयाते रहे और ये लड़की कार कि पिछली सीट पैर खोए खोए अंदाज़ मे बैठी रही . बहर हाल हमारी बातचीत आधा काम निपटाने के बाद तब शुरू हुई जब हम दोनो डॉक्टर के केबिन के बाहर बैठे थे . लेकिन तब भी सिर्फ़ इतना ही कि इससे पहले कहा काम करते थे और क्या काम करते थे ?
मुझे ठीक ठीक याद नहीं की कब हममें दोस्तों जैसी बातें होने लगीं . जहाँ तक मैं समझता हूँ की पूरे दफ़्तर मे लोग वहाँ के अपराध संवाददाता से काफ़ी डरते थे और सिर्फ़ मैं और प्रियंका , दो ही ऐसे शख्स थे जिनकी झड़प उसके साथ होती थी और कोई भी उन्नीस रहने के लिए तय्यार नही होता था . शायद यह भी एक कारण रहा हो . मैं अख़बार की सामाजिक-राजनीतिक मेग़ज़ीन का काम करता था और लोग इसे मेरा सौभाग्य कहेंगे लेकिन मैं इसे अपना दुर्भाग्य मानता हूँ की उसमे छपने वाले लेखों को पसंद किया जाता था . मार्केटिंग मे तो ज़रूर ही. मुझे याद आता हैं , हम लोग उस समय 'आत्महत्या' पर काम कर रहे थे और हमारी बहस से रोज़ का अख़बार विचलित ना हो इसलिए बॉस ने हमे अपना केबिन दे दिया थ . वही केबिन , जिससे मार्केटिंग विभाग सटा हुआ था और बीच मे सिर्फ़ एक लकड़ी की दीवार भर थी. उस केबिन मे आत्महत्या पर रोज़ घंटों गरमागरम बहसें होती थी . एक दिन मैं और मेरे बाक़ी साथी तीनो बैठकर अपने विषयों पर क्या लिखा जाए , इसपर बहस कर रहे थे कि केबिन का दरवाज़ा खुला और इस लड़की ने अंदर क़दम रखा . कहने लगी कि उसे हम लोगो का काम अच्छा लगता है और उसका भी मन करता है कि वो भी कुछ लिखे . हम लोगो ने सोचा कि चलो अच्छा हुआ , काम कुछ हल्का हुआ . मुझे ठीक ठीक याद है कि मैने उसे 'किशोरों में बड़ती आत्महत्या' पर लिखने के लिए दिया था . तब उसने पूछा भी था की आत्महत्या करने का कोई आसान तरीक़ा बताओ . मैने कहा की थोड़ी देर मे सोच के बताउंगा . थोड़ी देर बाद जब मैं कुछ चुगने की फ़िराक मे पूड़ी वाली दुकान पर गया तो मुझे उस दुकान पर एक लंबी सी चमकती हुई लाल मिर्च दिखी , मैने कुछ सोचा और उस पुड़ी वाले से वो लाल मिर्च माँग ली . मैं वापस केबिन मे आया और एक काग़ज़ पर लिखा ' आत्महत्या करने का आसान उपाय' और लाल मिर्च उस काग़ज़ मे लपेटी और प्रियंका की टेबल पर ले जाकर रख दी . उसकी एक और साथिन उसके साथ बैठी थी . मुझे याद है की इस बात पर हम इतना हँसे थे इतना हँसे थे की हमारी आँखों मे पानी आ गया था.
ये वो दिन था जब दफ़्तर मे मुझे लेकर काफ़ी सारी भावनाएँ उत्पन्न हुईं . संपादकीय मे मुझे जलन से देखा गया तो मार्केटिंग मे ठीक ठाक़ सा लड़का . इसके बाद तो मेरी पूरे दफ़्तर से ही अच्छी दोस्ती हो गयी . हम लोग अक्सर आपस मे हँसी मज़ाक करते , आख़िर हमेशा काम तो नही ही हो सकता है ना . इसी मज़ाक मे अक्सर वह मुझसे पूछ लेती कि आत्महत्या करने का कोई आसान तरीक़ा मेरे दिमाग़ मे आया कि नही ? और मैं भी इसे मज़ाक समझ कर अक्सर हँस के टाल देता था . एक दिन हम यूँ ही बैठे थे और बस यूँ ही दुनिया जहान क़ी और एक दूसरे के बॉयफ़्रेंड और गर्लफ़्रेंड क़ी बातें कर रहे थे . प्रियंका ने मुझे बताया कि उसकी शादी हो चुकी है . मैं जानता था कि वो शादीशुदा नही है और उसका बॉयफ़्रेंड अक्सर उसे दफ़्तर से थोड़ी दूर पर छोड़ कर चला जाता था . दफ़्तर मे अक्सर लोग मज़ाक भी किया करते थे कि उसने तो करवा चौथ का व्रत भी रखा और चंद्र देव को जल भी चड़ाया . ख़ैर उसने कहा कि एक दिन वो उसको मुझसे मिलवाएगी . उसने मुझसे भी पूछा तो मैने भी उसे अपने बारे मे बताया . दरअसल अब तक हम दोनो अच्छे दोस्त बन चुके थे और जैसे ही टाइम मिलता दोनो काफ़ी सारी बातें एक दूसरे से शेयर करते . लेकिन एक चीज़ जो मुझे अक्सर ख़टकने लगी थी वो ये कि हमारी बात चाहे ज़हाँ से शुरू हो , ख़त्म पता नही कैसे आत्महत्या पर ही होती थी . ख़ैर उस टाइम हमारी बस इतनी ही बात हुई और हम काम मे लग गये . इस बीच मुझे पता चला कि उसे लेकर बॉस किसी होटल मे गये और वही सब किया जो आमतौर पर ऐसे दफ़्तरों मे बॉस लोग करना अपना हक़ समझते हैं बाद एक और ख़बर मिली कि ये सब उसके लिए अपनी नौकरी का ही एक हिस्सा बन गया . वह कमज़ोर होती जा रही थी , उसे अक्सर चक्कर भी आने लगे थे कमज़ोरी की वजह से . इसका ज़िक्र वो अक्सर मुझसे करती थी . लेकिन मैं हँस के टाल देता था . उसका काम भी ठीक से नही चल पा रहा था और इसलिए उसे बॉस की डाँट अक्सर ही सुनने के लिए मिल जाती थी .
उसके चहरे की उन्मुक्त हँसी अभी भी दिखाई दे जाती थी लेकिन पता नही मुझे ऐसा क्यूं लगता था कि ये हँसी सिर्फ़ उसके चेहरे क़ी ही है . उसकी आँखें धसति ही जा रही थी . चेहरे का नूर दिनो -दिन ख़तम होता जा रहा थ . एक दिन उसका एक्सीडेंट हुआ तो उसने मुझसे रिक़्वेस्ट क़ी कि मैं दफ़्तर में किसी को बताए बिना ये बहाना बना कर दू कि मैं उसे आटो मे बिठाने जा रहा हू जबकि मुझे उसे उसके बॉयफ़्रेंड के पास ले जाना था जो कि उसका इंतेज़ार रोड पे कर रहा था . ख़ैर मैं उसे उसके बॉयफ़्रेंड के पास छोड़ आया . उस दिन मैने उसके बॉयफ़्रेंड को देखा . अच्छा ख़ासा स्मार्ट लड़का था . मैने सोचा कि आख़िर क्या वजह है कि उस उमर के लड़के जो सपना देखते हैं उसके विपरीत उसने इस प्रियंका जैसी लड़की को , जो ऐसे लड़को के मानदंड पर कतई ख़री नही उतरती है , वह इस से प्रेम करने लगा . एह एक काफ़ी सोचने वाली बात थी ... ख़ैर इतना सब होने के बाद नोयडा मे बहुचर्चित निठरि मे मार्मिक हत्या कांड हो गया. अब काफ़ी दिनों तक मेरी बातचीत उससे नही हो पाई . आख़िरी बार मेरी उससे क़ायदे से एक ही बार बातचीत हो पाई . वह फिर से मुझसे आत्महत्या के बारे मे पूछ रही थी . बातों ही बातों मे उसने नटवर सिंह कि पुत्रवधू कि बात छेड़ी . वो शराब पीकर और उसके बाद नींद कि गोली ख़ाके मर गयी थी . इस घटना के बाद वो मुझसे अक्सर शराब की माँग करने लगी . लेकिन मैं हमेशा उससे बहाने बना देता था . अभी कुछ दिन पहले ही जब हम लोग एक समाचार टी वी मे एक्ज़ाम देने जा रहे थे , वो मेरे घर आई . उसने फिर से शराब की माँग शुरू कर दी . यहाँ तक की रसोई मे रखी ख़ाली शिषियों मे भी काफ़ी खोजबीन की लेकिन उसे मायूस लौटना पड़ा. हम लोग काफ़ी जल्दी मे थे इसलिए कोई ख़ास बात नही हो पाई . मैने उसे सोमवार को निकलने वाली मेगज़ींन का सारा समान दिया और उसे कहा की इसे गुप्ता को दे देना . लेकिन पता नही क्यों मुझे लग रहा था की कहीं कुछ गड़बड़ ज़रूर है . रास्ते मे भी उसने काई बार मुझे फ़ोन करके कहा की कब आ रहा हो वापस ? मैं उस समाचार चैनल मे अपना फ़ॉर्म जमा करके तक़रीबन 4 घंटे बाद वापस लौटा . वह अपने विभाग से मेरे पास आई ,मेरे सामने बैठ गयी . उसके बाद वो फिर से मुझसे शराब की माँग करने लगी . मैने जानने के लिए काफ़ी ज़ोर दिया तो उसने मुझे बताया की आत्महत्या करने के लिए उसे शराब चाहिए थी . लेकिन उसकी किसी भी बात पर मुझे विश्वास नहीं हो पा रहा था . ख़ैर मैने उसे किसी तरह चलता किया और अपना शक मैने सामने बैठे समाचार संपादक पर ज़ाहिर किया . मैने उससे कहा की ये बात बॉस को बताई जाए . लेकिन उस टाइम यही सोचा गया की थोडि देर और इंतेज़ार करके देखते हैं और इसे वाच करते हैं . वक़्त गुज़रा और मैने अपना काम निपटाया और अख़बार का पेज बनवाना शुरू कर दिया. उस दिन मेरे घर पर पार्टी थी इसलिए मुझे घर जाने की जल्दी भी थी . जल्दी जल्दी पेज बनवाने के बाद जब मैं निकलने लगा तो वह फिर से मेरे पास आई और शराब की ज़िद करने लगी . जब तक मैं उससे कोई और बात करता , मार्केटिंग की हेड ने मुझे बुला लिया और पूछने लगी की प्रॉपर्टी वाले पेज का क्या हुआ ? मैने उसे बताया की बन जाएगा और मैं आज अपनी नौकरी छोड़ रहा हू . मैने उसे ये भी बताया कि प्रियंका को आज अपने घर ले जाओ क्योकि मुझे लग रहा है की आज वो कुछ उल्टा सीधा करेगी लेकिन वो बोली की उससे कोई मतलब नही है , वो सिर्फ़ दफ़्तर मे ही उसे जानती है . इतना सुनने के बाद मुझे विश्वास हो गया की ये लड़की आज कुछ ना कुछ ज़रूर करेगी . मैने बाद मे उसे फ़ोन किया की कही वो कुछ ऐसा वैसा ना कर ले . उसने कभी हाँ तो कभी ना वाले जवाब दिए . रात मे उसने मुझे फिर से फ़ोन किया.
यह आधी रात का वक़्त रहा होगा और वह इतनी रात को मुझे कभी भी फ़ोन नही करती थी . मैने ये सारी बातें उसी समय बॉस को फ़ोन करके बताईं और यह भी बताया कि वह काफ़ी बहकी बहकी बातें कर रही है . बॉस ने उससे बात की , फिर मुझे वापस फ़ोन किया और कहा कि तुम व्हस्की पीकर बैठे हो तभी तुम्हे ये सारी बातें सूझ रही हैं . ख़ैर दूसरे दिन प्रियंका ने मुझे सवेरे फ़ोन करके बताया कि वह ठीक है . हालाँकि उसने रात मे भी बॉस के फ़ोन के बाद मुझे फ़ोन करके कहा भी था कि मैं ये सारी बातें बॉस को क्यो बताईं . लेकिन मैं अपनी ज़िम्मेदारी से नही बच सकता था . इतना सब हो जाने बाद मैं काफ़ी परेशान हो गया . उस दिन मेरा एक न्यूज़ चेनल मे मेरा इंटरव्यू भी था , सो मैं सबके साथ वहा चला गया . वहाँ हम लोग एक पार्क मे बैठ कर अपनी बारी का इंतज़ार कर रहे थे कि तभी उसका फ़ोन आया . उसने मुझे बताया कि वह लक्ष्मी नगर मे है और शराब ख़रीदने जा रही है . मैं समझ गया कि अब ये लड़की कुछ कर के रहेगी . मैने उसे फ़ोन पर बहुत समझाया . इसी बीच उसने बॉस से अपने संबंध होने कि बात क़बूल की . तब तक हमारी बस इतनी ही बात हो पाई . लौटते हुए हम सारे ही लोग इतना ज़्यादा थक गाये थे कि सभी ने अपने अपने फ़ोन साईलेंट मोड़ पर डाले और खाना खाकर सो गये . दूसरे दिन जब मैं सवेरे सोकर उठा तो देखा कि तड़के 4 बजे उसकी 4 मिस काल पड़ी हुई थी . मैने सोचा कि अभी तो वो सो रही होगी इसलिए मैने तुरंत उसे फ़ोन नही किया . तक़रीबन 9 बजे के आसपास मैने उसे फ़ोन किया लेकिन मुझे कोई जवाब नही मिल पा रहा था . मेरा मन किसी अनहोनी की आशंका से कांप उठा . मैने कई बार उसका फ़ोन ट्राई किया लेकिन कोई रिसपोंस नही मिल रहा थ . काफ़ी डरते हुए मैने पता लगाने की कोशिश की तो ये पता चला कि वह हॉस्पिटल मे है . मैं समझ गया , वो जो कह रही थी , उसने कर दिखाया . फिर दूसरे दिन उसका फ़ोन हॉस्पिटल से आया और उसने मुझे बताया कि उसने तक़रीबन 35-40 नींद की गोलियाँ खा लीं थी. उसी के साथ मुझे पता चला कि उसने कई लोगों से उधार भी लिया था . एक बार उसने मुझे बताया भी था कि उसके उपर काफ़ी उधारी भी हो गयी थी . अब उसे इतने ज़्यादा पैसों की ज़रूरत क्यों पड़ती थी यह तो वही जाने लेकिन जो बात मैं जानता हूँ , उसका ख़ुद का ख़र्च 4-5 हज़ार से ज़्यादा नही था . ज़ाहिर है यह पैसे वह किसी को देती थी . शायद उसका बॉयफ़्रेंड .....गिद्ध उसके शरीर को ही नही बल्कि उसके मन को भी लगातार नोच रहे थे .. और ये ज़िल्लत वह बर्दाश्त नही कर पाई , मुझे भी उसके बच जाने का दुख हुआ ..काश वो मर ही गयी होती .. हालाँकि अब भी उसके फ़ोन आते हैं और मैं हर बार उससे वादा लेता हूँ कि अब वो दफ़्तर कभी नही जाएगी .. कम से कम बॉस से तो कभी नही मिलेगी ...एक बार उसने मुझे बड़ी ही मासूमियत से पूछा कि क्यो ना वो बॉस से मिले तो मैने कहा कि तू ख़ूब जानती है कि मैं ऐसा क्यों कह रहा हू...तब उसने हामी भरी कि...हाँ ...मैं जानती हूँ कि तू क्यों ऐसा कह रहा है ...और अंत में ...आजकल वह कुछ ख़ुश दिखाई देती है ..कहती है कि उसने ग़लत किया .. उसके घर वाले उसे बहुत प्यार करते हैं ..लेकिन मैं जानता हूँ और हर बार उससे बात करने वक़्त महसूस करता हूँ .. कि वो ...वो अब नही रही ..
समाप्त