Saturday, July 21, 2007

रिक्शेवाले की ठुसकी

किससे आती होगी असली बदबू ? मोहल्ले के कूड़े के ढ़ेर पर खौराये हुए कुत्ते से जो हमेशा पिछली टांग उठाकर कान को खबर खबर खुजलाता है और फिर पन्नियों के ढ़ेर मे बंद कल परसो के चावल दाल पर मुह मारता है? सड़क का वह पागल जिसके बाल बढ़े होते हैं और जब से पागल हुआ है तब से नहाया नही हुआ है ? बाल उसके बडे बडे हो गए हैं , उनमे लटें बन गई हैं मैल की । नाली मे लोटता हुआ सूअर जो आपको वह से गुजरते तो देखता है लेकिन परवाह नही करता । खासकर आपकी। रेलवे स्टेशन की फ्लाई ओवर वाली सीढ़ी पर बैठा वह यात्री जो बार बार अपनी नाक मे ऊँगली डालता है और फिर उसे निकाल कर देखता है कि हाँ .... अबकी आई असली चीज़ पकड़ मे । क्या उससे आती है असली बदबू ? किससे आती होगी असली बदबू ? वह रिक्शेवाला , जो आपको पीछे बैठाने पर बार बार ठुसकी मारता रहता है , क्या उससे ? या फिर उस रिक्शेवाले की सवारी जो उसके ठुसकी मारने की गंध का वर्णन करके सबको बताता है ? शहरी कीचड मे फसा हुआ पैर या फिर गाय के गोबर मे बूड गई चप्पल से ? बहुत सारी बदबूएँ हैं.... एक तुम भी हो.... सबसे बड़ी बदबू। एक मैं भी हूँ। सबसे बड़ी बदबू।

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