Tuesday, July 03, 2007

धुरविरोधी.... कही हो तो क्षमा करना

मैंने कभी भी सपने मे भी नही सोचा था कि ऐसा होगा। मैंने संजय की मानसिकता के साथ ही साथ मोदी को भी गालियाँ दी। मेरा ब्लोग नारद से निकाल दिया गया। मुझे कोई अफ़सोस नही। कतई अफ़सोस नही। आगे आने वाले समय मे मैं और भी गालियाँ दूंगा और वो भी तब तक जब तक कि ऐसे लोग एक सही लाईन पर नही आ जाते। ये साले लातो के भूत हैं। फालतू की बहस करने से ये सही नही होंगे। इनको सही करने का प्राथमिक उपाय गालियाँ ही हैं और तब भी न हो तो छह इंच छोटा करना पड़ेगा। सही लाईन का मतलब सिर्फ दूसरे धर्म की इज़्ज़त करना नही है बल्कि धर्म को एक सिरे से नकारना है। धर्म तो अफीम है जो सबको नशे मे रख कर उल्टे काम करवाता है। लेकिन फिर भी , कही न कही मुझे लग रह है कि मैं दोषी हू। मैं दोषी हू धुरविरोधी का। जिसके चिठ्ठे के लिए मैं काल बना। अब वही काल मुझे बार बार परेशान कर रह है कि मैंने.... मैंने एक चिठ्ठे की जान ले ली। मैं अपना कुछ भी लिख नही पा रहा हू। ना ही लिखने का मन हो रहा है। दिमाग मे बस एक ही बात घूमती रहती है...मैंने जान ली....मैंने ख़त्म कर दिया... इतना बड़ा पाप !! मैंने किसी की अभिव्यक्ति को बंद कर दिया... आह !! मैं सह नही पा रहा हू। बार बार मैं धुरविरोधी के ब्लाग पर जाता हूँ , इस आशा मे की शायद...शायद उन्होने अपनी पोस्टें फिर से अपने ब्लाग पर चढा दी हों...लेकिन ऐसा नही होता।

मैं बुरी तरह से अपराध बोध से ग्रस्त हूँ। गालियाँ देने के कारण नही बल्कि सिर्फ और सिर्फ इसलिये की धुरविरोधी अब हमारे बीच नही है। क्या करु , समझ मे नही आता। "नैपकिन विवाद " के बाद शायद ये मेरी पहली पोस्ट होगी और शायद आख़िरी भी...पता नही। उम्मीद तो खुद मैं भी लगा रहा हू की आख़िरी न हो। लेकिन चूतियों की जहर बुझी छिः करने की आदत ने ऎसी आग लगाई कि उसका बुझ पाना बहुत मुश्किल है। इस आग की प्रतिआग धुरविरोधी ने लगाई और उसको बुझाना बहुत ही कष्टदायक है। दर्द होता है... । जब भी कुछ लिखने बैठता हूँ , सिर्फ एक नाम दिमाग मे कौंधता है और सारी लिखाई घुस जाती है । कहा हो तुम धुरविरोधी ? मैं अधूरा हू तुम्हारे बिना। और न सिर्फ मैं बल्कि वो सब जो सहमति-असहमति का जनवाद हाथ मे थामे लड़ रहे हैं। तुम्हारी बहुत जरूरत है। सच !! तुमने अपना ब्लाग ही ख़त्म नही किया है....तुमने मुझे भी ख़त्म कर दिया है।
लेकिन हाँ । गंदे नैपकिन जैसी सोच वाले यह कतई न समझे कि उन्हें अब इस बात से गालियाँ पड़नी बंद हो जाएँगी। गालियों से भी न माने तो लात पडेगी और अगर लात से भी न माने तो सर के ऊपर से छह इंच के बाद की जगह नाप लीजिये । परमोद भैया सही कहे थे....
आओ आओ घात लगाएं
घेर घेर के लात लगाएं

किसने कहा हम चिरकुट हैं
कहवैये की तो बाट लगाएं......

3 आपकी बात:

Reyaz-ul-haque said...

नाप लेंगे क्या, गुजरात में इतना नापा है दूसरों का, अंदाज़ा होगा ही.
मान गये गुरु.

rajesh said...

ham bharatwasi hizre ho gaye hain. khana, paani, beema, bank, shiksha, dukaan, factory, drink, samachar patra.. sab men videshi companiyan aa gai hain. suna hai ki pm apne gestapo type mantrimandal ke saath mil ker parliament men bhi 50% seats europe aur america ke leaders ke liye reserve karne ja rahe hain... shayad sabhi gestapooon ke swiss account men bhi kaafi maal pahunch chuuka hai.

subhash Bhadauria said...

अपने दुश्मन को भी पाकीज़ा सज़ा देते हैं
कत्ल करते नहीं नज़रों से गिरा देते हैं.
मेरे यार गालियाँ छोटा बड़ा करना इलाज नहीं एक हमारी टिप्पड़ी पर छि भदौरियाजी को तमीज है कि नहीं का पाठ पढ़ाने वाले छि भाषा का रोना रोने बाले हमें ग़जल लिखने की नसीहत देते हैं.न छन्द का ज्ञान न प्रतीक मात्र प्रेम चोचलों पर वाह वाह करने वाले गिद्धराज बगुलराज कागराज नागराज सब मिले हुए हैं. आज सिद्धराज बने हुए है.मात्र नेट सुन्दरियों की कविता में इन्हें प्रतिभा नज़र आती है.
हमारी ग़जलों या व्यंग्य लेखों पर चुप रहते हैं. क्योंकि हम में वो स्वाद कहाँ पर ये नही जानते -
वक्त सब मुंसिफ़ों का मुंसिफ है
वक्त आयेगा इंतज़ार करो.
डॉ.सुभाष भदौरिया.अहमदाबाद.