Thursday, March 08, 2007

" अजी एक रोटी और ले लो ना प्लीज़ "

आज महिला सशक्तिकरण सप्ताह का दूसरा दिन है , और मेरे घर के बगल वाली औरत अपने पति से पिट रही है और उसके चीखने की आवाज़ आ रही है ...
अर्ररर...
माफ़ कीजिएगा लेकिन ये लाइनें पुरानी पड़ चुकी हैं और इतनी घिसी हैं की अब इन्हे फिर से पढ़ने का मन ही नही होता . लेकिन एक बात जो मेरी समझ मे नही आ रही है क़ि ये भी तो मानने का मन क्यूं नही होता की महिलाएँ आज दो नही दस क़दम आगे चल रही हैं . इंदिरा नुई और ऐश्वर्या रॉय , सोनिया गाँधी और वृंदा कारत , दिखाने वाले तो पूरी की पूरी लिस्ट दिखाते हैं की देखिए भाई साहब , कितनी आगे हैं हमारे देश की महिलाएँ . कोई मुक़ाबला है इनका ? नही मिलेगा . पूरी दुनिया मे कही नही मिलेगा . क्या कोई दूसरी सानिया मिर्ज़ा कहीं मिल सकती है ?
लेकिन ये सब तो सागर की कुछ बूँद मात्र हैं . इससे ज़्यादा कुछ नही . इलाहाबाद मे उसके साथ बलात्कार किया जाता है तो गुजरात मे उनकी छातियाँ काट डाली जाती है , कहीं पे ससुर उनके साथ ज़बरदस्ती शारीरिक संबंध बनता है तो कहीं पे बाप ख़ुद बेटी के साथ बलात्कार करता है .. और ये सब इसी साल की घटनाएँ हैं . (देखें यू पी और दिल्ली की हाल की कुछ घटनाएँ) .
लेकिन मेरी समझ मे अभी भी नहीं आ रहा है क़ि ये सब मैं अभी भी क्यों लिखे जा रहा हूँ ? हमे तो जब ग़ुस्सा लगेगी तो हम अपनी बीवियों पे उतारेंगे ही . अब भई खाना वग़ैरह तो हमसे बनता नही है फिर मैडम तो अभी ड्यूटी से आती ही होंगी , बनाएँगी , फिर परोसेँगी और .. " अजी एक रोटी और ले लो ना प्लीज़ " कहकर हमे खिलाएंगी ही . बेटी तो चलो हमने किसी तरह स्वीकार भी कर ली लेकिन ताने मारना तो फिर चाहे वो ग़ुस्से मे आकर ही क्यों ना मारेँ हमारे लिए ज़रूरी हो जाता है , आख़िर बीवी काबू मे कैसे रहेगी . मेरी अभी भी समझ मे नही आ रहा है क़ि मैं अभी तक ये सारी बकवास क्यों कर रहा हूँ ..
शायद ख़ाली दिमाग़ शैतान का घर होता है
और मेरे अंदर तरह तरह का शैतान जाग रहा है ..

2 आपकी बात:

ghughutibasuti said...

सही कह रहें हैं भाई आप ! वैसे पुरुष को जन्मते से ही एक पंचिंग बैग उपहार में क्यों नहीं दे दिया जाता ? क्या आवश्यक है कि उसे विवाह तक उसकी प्रतीक्षा करनी पड़े ? यह तो न्याय है पुरुषों के साथ !
घुघूती बासूती

Rising Rahul said...

कोई बैग शैग देने की क्या ज़रूरत है घुघूती जी , वो तो सारे मर्दों के दिमाग़ मे पहले से ही मौजूद होता है , फ़र्क यही है की कोई उसे जल्दी हाथ मे ले लेता है और कोई प्रगतिशीलता का दिखावा करते हुए थोड़ी देर बाद मे हाथ मे लेता है , बस तरीक़े अलग अलग होते हैं ,, बहुत दिनो से इस तरह के मर्दों को महसूस कर रहा हू , जल्द ही मैं इन सबका बजार लगौंगा और चार आने , आठ आने मे बेचूंगा .